विजय प्राप्ति और परेशानियों से मुक्ति के लिए नागेश्वर पंचमी पर की जाती है शिव पूजा

शुक्रवार, 28 फरवरी को फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की पंचमी है। इस तिथि पर भगवान शिव के नागेश्वर रूप की पूजा की जाती है। शुक्लपक्ष की पंचमी पर शिवजी का निवास कैलाश पर माना गया है। पूर्णा तिथि होने से इस दिन भगवान शिव की पूजा करने का महत्व और बढ़ जाता है। 


नागेश्वर ज्योतिर्लिंग


पंचमी तिथि के स्वामी नाग होने से इस तिथि पर भगवान शिव के नागेश्वर रूप की पूजा की जाती है। नागेश्वर का अर्थ होता है नागों के देवता। रुद्र संहिता में शिवजी के इस ज्योतिर्लिंग की पूजा का महत्व बताया गया है। 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में इसे आठवां स्थान प्राप्त है। प्रमुख शिव ग्रंथों के अनुसार ये ज्योतिर्लिंग गुजरात के दारुक वन यानी द्वारिका पुरी में स्थित है।


व्रत की कथा


शिव ग्रंथों की कथा के अनुसार शिवभक्त वैश्य सुप्रिय अपने सारे कार्य शिव को अर्पित करता था, उसकी शिव भक्ति से दारुक नामक दैत्य गुस्सा होकर सुप्रिय की पूजा-पाठ में रूकावटें पैदा करता था। 


एक दिन दारुक ने सुप्रिय को कैद कर दिया, लेकिन उसकी शिव आराधना निरंतर चलती रही। इस पर दारुक ने सुप्रिय को मृत्यु दंड दिया। 


महादेव ने सुप्रिय की रक्षा के लिए कारागार में चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए व सुप्रिय को पाशुपतास्त्र प्रदान किया। जिससे सुप्रिय ने दारुक का अंत कर दिया।


जहां भगवान शिव प्रकट हुए थे वहां अपने आप शिवलिंग बन गया। इसके बाद शिवजी की इच्छा से ही वहां नागेश्वर रूप में उनकी पूजा की जाने लगी।


मंत्र और पूजन विधि


सुबह जल्दी उठकर नहाएं और व्रत एवं शिवपूजा का संकल्प लें।


इसके बाद शिव मंदिर जाएं  या घर पर ही शिवजी पर दूध एवं जल चढ़ाएं।


फिर अबीर, गुलाल, चंदन, अक्षत, मौली, बिल्वपत्र, मदार और धतूरे के फूल शिवजी को चढ़ाएं।


इसके बाद भस्म लगाएं और फिर मिठाई का भोग लगाएं एवं उसके बाद आरती करें।


पूजा करते समय ऊं नागेश्वराय नम: शिवाय नम: मंत्र बोलें।


महत्व


शिव पुराण के अनुसार फाल्गुन शुक्लपक्ष की पंचमी पर शिव के नागेश्वर स्वरूप की पूजा और व्रत करने से परेशानियां दूर हो जाती है। सुख बढ़ते हैं और धन लाभ भी होता है। दुश्मनों पर जीत प्राप्ति की कामना से भी इस दिन व्रत और पूजा की जाती है। इस दिन शिव पूजा करने से हर तरह की बीमारियों में भी आराम मिलने लगता है।